भाषा रे भाषा तेरा रँग कैसा – जिसमे मिला दो उसी के जैसा।

हिंदी … से रोटी कमाने वालों के लिए हिंदी नौकरी है … और जरुरी नहीं सबको अपने काम से , पेशे से प्यार हो … नौकरी करते- करते आप चेयरमैन क्लब का अवार्ड भी हासिल कर सकते हो .. तनख्वाह और पेंशन भी …शाल और सम्मान भी …वो भी बिना पेशेगत संतुष्टि के, आई मीन विदाउट जॉब सैटिसफ़ैक्शन ..यू नो।

इ मार्क की दुनिया को देखिये … क्या स्वतःफूर्त औकात निर्धारण किया है हिंदी का … बिना किसी ज्ञानी के ज्ञानदान के … बिना किसी सपोर्ट फैलाने के मोमबत्ती दीपदान के …जहाँ किसी ने नहीं कहा की आप रोमन से हिंदी लिख -लिख के अपनी बात कहते हुए अपनी काम वाली अंग्रेजी का नुक्सान करो .. कोई आदेश भी जारी नहीं हुआ की इस दुनिया में गूगल बाबा के हिंदी इनपुट टूल के बिना प्रवेश वर्जित है .. बस यही मामला काफी है समझने के लिए कि इन मामलों का सत्यानाश .. बुद्धि और राज की नीति ने किया है वरना भाषा तो जहाँ जिससे मिली उसमे समा अपना – अपना स्वाद बखूबी अलग सम्हाले और महसूस कराती रही।

Apna Purvanchal Admin

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