सौ यज्ञों के बराबर जगन्नाथ रथयात्रा का पुण्य

आषाढ़ शुक्ल पक्ष की द्वितीया को पूरी से शुरू होने वाली जगन्नाथ रथयात्रा केवल दक्षिण भारत ही नहीं वरन देश भर के महत्वपूर्ण धार्मिक उत्सवों में से एक है । इसमें हर साल लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं । यह ऐसा पर्व है जब जगन्नाथ जी यात्रा के दौरान खुद जनता के बीच आते और दस अवतारों का रूप धारण कर सभी भक्तों को समान रूप से तृप्त करते हैं । खास बात यह है कि इस आयोजन में देशी ही नहीं बड़ी संख्या में विदेशी श्रद्धालु ही हिस्सा लेते हैं ।

हिंदुस्तान के चार पवित्र धामों में से एक पूरी के आठ सौ वर्ष पुराने मुख्य मंदिर में योगेश्वर श्रीकृष्ण जगन्नाथ रूप में विराजते हैं । पुरी में रथ यात्रा के लिए बलदेव , श्री कृष्ण व सुभद्रा के लिए अलग-अलग तीन रथ बनाए जाते हैं । बलभद्र के रथ को ‘पालध्वज‘ व उसका रंग लाल एवं हरा , सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन‘ और उसका रंग एवं नीला तथा भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘गरुड़ध्वज‘ या ‘नंदीघोष‘ कहते हैं । इसका रंग लाल व पीला होता है ।

रथ यात्रा सबसे आगे बलभद्र जी का रथ, उसके बाद बीच में सुभद्रा जी का रथ तथा सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ जी का रथ होता है । आषाढ़ की शुक्ल द्वितीया को तीनों रथों को सिंहद्वार पर लाया जाता है । स्नान वह वस्त्र पहनाने के बाद प्रतिमाओं को अपने-अपने रथ में रखा जाता है । जब रथ तैयार हो जाते हैं तब पूरी के राजा एक पालकी में आकर इनकी प्रार्थना करते हैं तथा प्रतीकात्मक रूप से रथ मंडप को झाड़ू से साफ करते हैं । इसे ‘छर पहनरा’ कहते हैं । इसके बाद ढोल , नगाड़ों , तुरही तथा शंखध्वनि के बीच भक्तगण इन रथों को खींचते हैं ।

रथ खींचनें में सहयोग करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है । यह बात भक्तों को उत्साहित करती है । नगर से गुजरते हुए ये रथ गुण्डीचा मंदिर पहुंचते हैं ।और यहां सात दिनों के लिए रूकते हैं । और तब भगवान यहीं विश्राम करते हैं ‌। सारा शहर श्रद्धालु भक्तगणों से खचाखच भर जाता है । भगवान जगन्नाथ की इस यात्रा से में शायद ही कोई व्यक्ति ऐसा हो, जो कि सम्मिलित न होता हो ।

आषाढ़ की दसवें दिन रथों को मुख्य मंदिर की ओर पुन: ले जाया जाता है और इसे बहुड़ा यात्रा कहते हैं । वापस मंदिर पहुंचने पर सभी प्रतिमाएं रथ में ही रहती हैं । आगामी दिन एकादशी होती है और तब मंदिर के द्वार देवी-देवताओं के लिए खोले जाते हैं ।

श्री कृष्ण के अवतार जगन्नाथ की रथयात्रा का पुण्य सौ यज्ञों के बराबर माना गया है । पुरी जगन्नाथ मंदिर में रथोत्सव के वक्त इसकी छटा निराली होती है । जहां प्रभु जगन्नाथ को अपनी जन्मभूमि , बहन सुभद्रा को मायके का मोह यहां खींच लाता है । रथयात्रा के दौरान भक्तों को सीधे प्रतिमाओं तक पहुंचने का मौका भी मिलता है ।यह दस दिवसीय महोत्सव होता है ।

Rajendra Yadav

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