यहां है महर्षि वाल्मीकि का आश्रम

बालकांड का संदर्भ लें तो ज्ञात होता है कि वाल्मीकि का आश्रम तमसा नदी के तट पर और गंगा के निकट स्थित था ।

“सं मुहूर्तंगते तस्मिन देवलोकं मुनिस्तदा जगाम तमसातीरं जाह्नव्यास्त्वविदूरत: ।”

इसके अतिरिक्त गोस्वामी तुलसीदास ने ‘रामचरित मानस’ के अयोध्या कांड में एक स्थान को वाल्मीकि का आश्रम बताया है ।

देखत वन सर शैल सुहाए, बाल्मीकि आश्रम प्रभु आए ।
रामदीख मुनिवास सुहावन , सुंदर गिरि कानन जलपावन ।
सरनि सरोज (विटप वन) फूले , गुंजत मंजुमधुप रस भूले ।
खगमृग विपुल कोलाहल करहीं ,विरहित वैर मुदित मन चरहीं ।

उत्तर प्रदेश में कानपुर से 28 किलोमीटर दूर एक छोटी सी जगह है बिठुर । यहीं पर वाल्मीकि का आश्रम माना गया है । यहीं पर बैठकर उन्होंने रामायण की रचना की थी । इसी आश्रम में सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था । लव कुश की जन्म स्थली कहे जाने वाले बिठूर में हर दिन हजारों की संख्या में लोग दर्शन कर करने के लिए आते हैं । सीता रसोई ,बाल्मिकी आश्रम आदि के अस्तित्व आज भी यहां विराजमान है । यहां माता सीता का एक मंदिर है । मंदिर में माता सीता की प्रतिमा अपने पुत्र लव और कुश के साथ है । यह आश्रम काफी ऊंचाई पर बना है, इसलिए यहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं । इन सीढ़ियो को स्वर्ग जाने की सीढ़ी कहा जाता है । स्थानीय लोग इसे सरग नशेनी भी कहते हैं ।

बताया जाता है कि इस आश्रम की आखिरी सीढ़ी से पूरे बिठूर का सुंदर नजारा देखा जा सकता है । स्थानीय लोगों का मानना है कि जब भगवान राम के आदेश पर लक्ष्मण ने सीता को जंगल में छोड़ दिया था, तो वह भटकती हुई यहां पहुंची थी । यहीं पर उनकी मुलाकात ऋषि बाल्मीकि से हुई थी । इसके बाद वो उन्हें बिठूर के आश्रम में ले गए । उनका आश्रम आज भी वहां है । बताया जाता है कि पहले यहां दीपक जला कर रखा जाता था , जिन्हें ‘दीप मालिका’ भी कहा जाता है ।

स्थानीय लोगों द्वारा दावा किया जाता है कि इन सीढ़ियों को नाना पेशवा ने बनवाया था । इसके बगल में एक घंटा भी लगा है । कहा जाता है कि जब इस घंटे को बजाया जाता था , तो तात्या टोपे को पता चल जाता था कि उन्हें बुलाया जा रहा है । बाल्मीकि आश्रम में तीन मंदिर है । इनमें से एक मंदिर खुद बाल्मीकि का है, जिसमें उनकी प्रतिमा है । वे पद्मासन की मुद्रा में बैठे हुए हैं और दाएं हाथ में लेखनी लिए हुए हैं । यहीं पर रहकर उन्होंने रामायण की रचना की थी । उनके पास ही भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है । आश्विन शुक्ल पूर्णिमा को बाल्मीकि जयंती मनाई जाती है ।

कुछ लोग बाल्मीकि आश्रम मेरठ से करीब 27 किलोमीटर दूर बागपत का एक गांव बलैनी में बताते हैं । यह गांव बागपत शहर से करीब 23 किलोमीटर दूर है । मेरठ से बागपत की तरफ जाते समय करीब 27 किलोमीटर दूर अंदर की तरफ एक रास्ता कटता है , इसी रास्ते पर आप चलेंगे तो आखिर में आपको एक आश्रम दिखाई देगा । यह बाल्मीकि आश्रम है । यह आश्रम हिंडन नदी के पास स्थित है । इसी आश्रम में सीता जी ने अंतिम समय बिताया था और बेटे लव और कुश का जन्म हुआ था ।

Rajendra Yadav

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