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इस भृगु क्षेत्र के महात्म्य के लेखक शिव कुमार सिंह कौशिकेय ने बताया कि कार्तिक पूर्णिमा पर भृगु क्षेत्र में गंगा सरयू के संगम में स्नान करने पर वही पुण्य मिलता है , जो पुष्कर और नैमिषारण्य वास करने से होता है । 60 वर्षों तक काशी में तपस्या करने से या राष्ट्र धर्म के लिए रणभूमि में वीरगति प्राप्त करने से होता है । यहां पर स्नान करने की परंपरा लगभग 7000 वर्ष पुरानी है । जीवनदायिनी गंगा के संरक्षण और स्नान तथा मेले को महर्षि भृगु ने प्रारंभ किया था । प्रचेता ब्रह्मा वर्णी के पुत्र महर्षि भृगु का मंदराचल पर हो रहे यज्ञ में ऋषि गणों ने त्रिदेवों ( ब्रह्मा , विष्णु , महेश ) को परीक्षा का काम सौंपा था । इसी परीक्षा लेने में महर्षि भृगु ने क्षीर सागर में विहार कर रहे भगवान विष्णु पर पैर ( पद ) से प्रहार कर दिया । इसके बदले दंड स्वरूप महर्षि भृगु को एक दंड (डंडा ) और मृगछाल देकर , विमुक्त तीर्थ में विष्णु सहस्त्रनाम जप द्वारा शाप मुक्त होने के लिए , महर्षि भृगु के दादा मरीचि ऋषि ने भेजा ।
इसी विमुक्त क्षेत्र में ही महर्षि भृगु के कमर से मृगछाल , पृथ्वी पर गिर गई । और इसी गंगा तट पर उनके सूखे डंडे से कोपलें फूट निकली । तब महर्षि भृगु ने यहीं तपस्या प्रारंभ कर दिया । कुछ समय बाद जब महर्षि भृगु को अपनी ज्योतिष गणना से यह ज्ञात हुआ कि कुछ समय बाद यहां गंगा नदी सूख जाएगी । तब उन्होंने अपने शिष्यों को उस समय अयोध्या तक ही प्रवाहित होने वाली , सरयू नदी की धारा को , यहां तक लाकर गंगा नदी के साथ गंगा संगम पर पहुंचा दिया ।जब महर्षि भृगु के शिष्यों ने अपने सहयोगियों सहित सरयू नदी की जल धारा को अयोध्या से लाकर गंगा नदी से मिलाया , तो घर्र – घर्र , दर्र – दर्र की आवाज निकलने लगी । उस समय यह काम करना बहुत बड़ा था । अपने शिष्यों के द्वारा दो नदियों के संगम प्रदान करने से हर्षित भृगु ने एक विशाल उत्सव , यज्ञ करवाया । जिसमें एशिया महाद्वीप के अधिक से अधिक लोगों ने भाग लिया । तथा सभी लोगों ने इस संगम में स्नान किया और समारोह में भाग लिया । यह कार्यक्रम महीनों तक चलता रहा ।
इसी परंपरा में हजारों साल से यह ददरी मेला लगता है । त्रेता युग ( रामायण काल ) और द्वापर युग ( महाभारत काल ) में भी , भृगु क्षेत्र का यह भू – भाग सूर्य मंडल के उत्तर , कौशल राजवंश के अवध , काशी और मगध , वैशाली राज्यों का सीमांत क्षेत्र था । जिस पर महर्षि भृगु की शिष्य परंपरा के सन्यासियों का अधिकार था । प्रतिवर्ष होने वाले यज्ञों और ददरी मेला में चारों राज्यों के राजा और प्रजा आते थे ।
यह राजवंशों और भूपति परिवारों द्वारा अन्य क्षेत्र में जाता था इसका उल्लेख विभिन्न ग्रंथों में मिलता है । महर्षि भगु और उनके शिष्य दर्दर मुनि ने 7000 वर्ष पहले गंगा की अविरल धारा को बनाए रखने के लिए जो प्रयास किए थे , उसी कारण से आज गंगा नदी यहां से लेकर बंगाल की खाड़ी तक प्रवाहमान है और इन क्षेत्रों में भूगर्भ जल एवं पर्यावरण संरक्षित है ।