मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ और रानी कौशल्या के सबसे बड़े पुत्र थे । राम की पत्नी का नाम सीता था । उनके तीन भाई लक्ष्मण , भरत और शत्रुघ्न थे । राजा दशरथ की तीन रानियां थी — कौशिल्या , कैकेयी और सुमित्रा । हनुमान जी श्री राम के सबसे बड़े भक्त माने जाते हैं । श्री राम ने लंका के राजा रावण का वध किया था । रानी सुमित्रा के दो पुत्र लक्ष्मण और शत्रुघ्न थे । कैकेयी का एक पुत्र भरत था । लक्ष्मण की पत्नी का नाम उर्मिला , शत्रुघ्न की पत्नी का नाम श्रुतकीर्ति और भरत की पत्नी का नाम मांडवी था । सीता और उर्मिला राजा जनक की पुत्रियां थीं । जबकि मांडवी और श्रुतकीर्ति कुशध्वज की पुत्रियां थी ।
अब मैं आप लोगों को राजा दशरथ के मुकुट और श्रीराम के वन गमन के विषय में बताने जा रहा हूं –
एक बार की बात है अयोध्या के राजा दशरथ भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले थे । वहां उनका सामना बाली से हो गया । राजा दशरथ से वार्तालाप में किसी बात से नाराज होकर बाली ने युद्ध करने के लिए राजा दशरथ को चुनौती दे दिया । राजा दशरथ ने तीन रानियों में से एक कैकेयी को हमेशा अपने साथ रखते थे , क्योंकि वह अस्त्र-शस्त्र एवं रथ चलाने में निपुण थी । जब बाली और राजा दशरथ के बीच भयानक युद्ध होने लगा उस समय संयोग से रानी कैकेयी भी उनके साथ में थी । युद्ध में राजा बाली , राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा । क्योंकि राजा बाली को यह वरदान प्राप्त था कि बाली की दृष्टि यदि किसी पर भी पड़ जाएगी , तो सामने वाले की आधी शक्ति बाली को प्राप्त हो जाती थी । इसलिए यह निश्चित था कि उन दोनों राजाओं के युद्ध में राजा दशरथ की हार होगी ।
राजा दशरथ के हारने पर बाली ने उनके सामने एक शर्त रखी थी कि वह पत्नी कैकेयी और रघुकुल की आन अपना मुकुट दोनों में से एक मेरे पास छोड़कर जाएं । तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़कर रानी कैकेयी को वापस लेकर अयोध्या आना पड़ा । रानी कैकेयी को यह बात बहुत बुरी लगी कि मेरे बदले में राजा दशरथ ने अपने कुल की शान मुकुट को दूसरे के पास छोड़कर आए हैं । आखिर एक स्त्री अपने पति के अपमान को कैसे बर्दाश्त कर सकती है । कैकेयी को यह बात हर पल कांटे की तरह चुभने लगी थी कि मेरे कारण ही राजा दशरथ को अपना मुकुट छोड़ना पड़ा । इसलिए रानी कैकेयी हमेशा रघुकुल की आन – शान मुकुट को वापस लाने के लिए चिंता में रहने लगी ।
जब श्री राम जी के राजतिलक की बात सामने आई , तब राजा दशरथ और रानी कैकेयी का मुकुट को लेकर चर्चा होने लगी । यह बात तो केवल इसी दोनों पति पत्नी को मालूम था क्योंकि बिना ताज के राजतिलक कैसे होगा । इसलिए कैकेयी ने रघुकुल की आन मुकुट को लाने के लिए श्री राम को वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भेजवाया । और कैकयी ने श्री राम के वनवास जाते समय यह बात राम से कही थी कि बाली से अपना मुकुट वापस लेकर आना है । क्योंकि कैकेयी को राम पर यह विश्वास था कि चारों लड़कों में श्रीराम ही ऐसा है कि मुकुट को ला सकता है ।
श्रीराम ने वनवास जाने के बाद जब बाली को मार दिया , तो राम का बाली के साथ संवाद होने लगा । श्रीराम ने अपना परिचय देकर बाली से अपने रघुकुल की आन मुकुट के बारे में पूछा । तब बाली ने बताया कि रावण को मैं बंदी बनाया था , तो यहां से जब रावण भागा तो साथ में छल करके मुकुट भी लेकर भाग गया । इसलिए हे प्रभु , मेरे पुत्र को आप अपने साथ लेकर जाइए वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आप का मुकुट वापस लेकर आएगा । जब अंगद श्री राम का दूत बनकर रावण की सभा में गया तो वहां अंगद ने अपना पैर जमीन पर जमा दिए । और वहां उपस्थित वीरों से अपना पैर हिला कर दिखाने की चुनौती दिया । वहां उपस्थित रावण के सभी योद्धा अंगद का पैर हिलाने में अपनी पूरी ताकत लगा दिए , किंतु कोई भी अंगद के पैर को हिलाने में सफल नहीं हो पाया । यह दृश्य देखकर स्वयं रावण , अंगद के पास पहुंचा और अंगद के पैर को हिलाने के लिए जैसे ही नीचे झुका तो रावण के सिर से वह मुकुट नीचे गिर गया । इतने में अंगद ने पहले से तैयार अपने साथ रखे हुए नकली मुकुट से रावण के मुकुट को बदल दिया । और रावण के सिर से गिरा मुकुट जो रघुकुल का था को वापस लेकर श्री राम के पास चले आए । और अंगद ने राम को मुकुट देकर अपने पिता बाली के वचन को पूरा किया ।

श्री राम ने रघुकुल की आन शान मुकुट को प्राप्त कर लिया । लेकिन वह राजमुकुट जब भी जिसके पास रहता था वह सुखी रहता था । और जिसके पास से वह दूर होती थी , उसको पीड़ा झेलना पड़ता था या मृत्यु का कारण बनता था । मुकुट जब राजा दशरथ के पास से गई तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी । बाली से रावण मुकुट ले गया तो बाली को अपने प्राणों की बलि देनी पड़ी थी । उसके बाद जब अंगद रावण से मुकुट लेकर गया तो रावण के प्राण भी चला गया । तथा कैकेयी के कारण ही रघुकुल की लाज बच सका । यदि कैकेयी श्री राम को वनवास नहीं भेजती तो मुकुट (मान- सम्मान ) वापस नहीं लौटता । कैकेयी ने कुल (खानदान) के सम्मान के लिए सभी कलंक और अपयश अपने ऊपर ले लिया था । क्योंकि कैकेयी राम को भरत से अधिक प्रेम करती थी और श्री राम भी अपने माताओं में सबसे अधिक प्रेम कैकेयी से करते थे । और वनवास से आने के बाद भी कैकेयी से बड़ी प्रेम से मिले थे ।
श्री राम तो स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं । उनको सब कुछ मालूम होते हुए भी निम्नलिखित अन्य कारणों से पत्नी देवी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ वनवास को जाना पड़ा था :-
रामायण की कथा के अनुसार कैकेयी की जिद्द के वजह से भगवान श्री राम को वनवास जाना पड़ा था । जब माता कैकेयी ( जो कि श्री राम को अपने पुत्र भरत से भी अधिक प्यार करती थी) ने अपने पुत्र भरत को राजा बनाने के लिए पति श्री दशरथ जी के माध्यम से श्री राम को वन में भिजवा दिया । क्योंकि राम के रहते , दशरथ जी कभी भरत को राजा नहीं बना सकते थे । कैकेयी ने राजा दशरथ से ( पहले से बाकी ) दो वरदान मांगकर , एक से भरत को राजगद्दी और दूसरे से राम को 14 साल का वनवास देना पड़ा था । माता कैकेयी से राम को वन भेजवाने का काम देवताओं ने करवाया था । यह बात राम चरित्र मानस के इस दोहे से स्पष्ट हो जाता है :–
बिपति हमारी बिलोकि , बड़ि मातु करिअ सोइ आजु ।
रामु जाहिं बन राजु , तजि होइ सकल सुरकाजु ।।
भगवान श्रीराम का जन्म रावण का वध करने के उद्देश्य से हुआ था । अगर राम राजा बन जाते , तो देवी सीता का हरण और उसके बाद रावण का वध का उद्देश्य अधूरा रह जाता । इसलिए देवताओं के अनुरोध पर देवी सरस्वती ने कैकेयी की दासी मंथरा की मति फिरा देती है । इसके बाद मंथरा आकर कैकेयी का कान भरने लगती है कि राम राजा बन जाएंगे । तो राम की माता कौशिल्या का मान – सम्मान बढ़ जाएगा । इसलिए तुम भरत को राजा बनवाने के लिए हठ करो । यह बात मंथरा के मुंह से खुद सरस्वती बोल रही थी । यह बात सुनकर कैकेयी खुद को कोप भवन में बंद कर लेती है । राजा दशरथ जब कैकेयी को मनाने पहुंचते हैं तो कैकेयी ने भरत को राजा और राम को 14 वर्ष का वनवास की मांग करती है । मजबूरी में न चाहते हुए भी राजा दशरथ ने , राम को वनवास भेजा था ।
एक अलग कारण यह है कि नारद मुनि के श्राप के कारण राम को वनवास जाना पड़ा था । एक बार नारद मुनि के मन में एक सुंदर कन्या को देखकर विवाह की इच्छा होने लगी । इस मन की इच्छा पूर्ति के लिए नारद जी , भगवान विष्णू के पास पहुंचते हैं । और भगवान नारायण विष्णु से हरि जैसी छवि (रूप ) मांगते हैं । हरि का मतलब विष्णु भी होता है और हरि का अर्थ बंदर भी होता है । तो भगवान ने अपना रूप न देकर बंदर का रूप दे दिया । इस कारण से नारद का विवाह नहीं हो सका था । तब क्रोधित होकर नारद मुनि ने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि आपको ( विष्णु को ) देवी लक्ष्मी माता का वियोग सहना पड़ेगा । और बंदर की सहायता से ही फिर से आप दोनों को मिलन होगा । इस श्राप के कारण विष्णु के अवतार , भगवान राम को वनवास जाना पड़ा था ।
एक कारण यह भी है कि भगवान श्रीराम स्वयं ही वनवास जाना चाहते थे । तुलसीदास ने रामचरित्रमानस में लिखा है कि ” होइहि सोइ जो राम रचि राखा । ” यानी भगवान श्री राम की इच्छा के बिना कुछ भी नहीं होता है । भगवान राम स्वयं ही अपनी लीला को पूरा करने के लिए वन जाना चाहते थे । क्योंकि वन में उन्हें हनुमान से मिलना था ,अहिल्या का ,शबरी का उद्धार करना था । धरती पर धर्म और मर्यादा की सीख देनी थी । इसलिए जन्म के पहले से ही राम यह तय कर चुके थे कि उन्हें वन जाना है और पृथ्वी पर से पाप का भार कम करना है ।
एक अन्य कारण यह भी है रानी कैकेयी विवाह से पहले महर्षि दुर्वासा की सेवा किया करती थी । कैकेयी की सेवा से प्रसन्न होकर महर्षि दुर्वासा ने एक हाथ बज्र का बना दिया था । और आशीर्वाद दिया था कि भविष्य में भगवान तुम्हारे गोद में खेलेंगे । धीरे-धीरे समय बीतता गया और राजा दशरथ के साथ कैकेयी का विवाह संपन्न हो गया । एक समय स्वर्ग में देवासुर संग्राम शुरू हो गया । देवराज इंद्र ने अपनी सहायता के लिए राजा दशरथ को बुलाया । रानी कैकेयी भी राजा दशरथ की सुरक्षा के लिए सारथी बनकर देवासुर संग्राम में पहुंच गई । युद्ध के दौरान रथ के पहिए से कील निकल गया और रथ लड़खड़ाने लगा । ऐसी परिस्थिति में कैकेई ने कील की जगह अपनी अंगुली लगा दी और महाराज की जान बचा लिया । जब इस बात का पता राजा दशरथ को चला कि कैकेयी ने युद्ध भूमि में बहुत ही साहसिक काम किया है । तो प्रसन्न होकर कैकयी से दो वरदान मांगने को कहा । उस समय प्रेमवश कैकेयी ने कहा इसकी आवश्यकता नहीं है । जब जरूरत होगा तो मांग लूंगी । कैकयी ने इसी वरदान के जाल में फंसा कर राम को 14 वर्ष का वनवास मांग लिया ।
कैकेयी ने केवल 14 वर्ष का वनवास इसलिए मांगा कि व्यक्ति युवावस्था में 14 इन्द्रियां यानी पांच ज्ञानेंद्रियां (कान ,नाक ,आंख ,जीभ , त्वचा) पांच कर्मेंद्रियां (वाक ,वाणी , पाद ,पायु ,उपस्थित ) तथा ( मन , बुद्धि , चित्त और अहंकार) को वनवास ( एकान्त ) आत्मा को वश में रखेगा तभी अपने अंदर के घमंड और रावण को मार पाएगा ।
एक अन्य कारण यह भी है कि रावण की आयु में केवल 14 वर्ष ही बाकी थे । 14 वर्ष में रावण मारा जाने वाला था । यह बात देवलोक से माता कैकयी को बताई जा रही थी कि तुम दशरथ से ऐसे-ऐसे वरदान मांगो । क्योंकि राम , कैकई के प्रिय थे । उन्हें कभी भी अपने से दूर नहीं रख सकती थी । और इस घटना को दशरथ जी भी नहीं बर्दाश्त कर सके और पुत्र मोह में अपने प्राण त्याग दिए । तथा कैकेयी हर जगह बदनाम हो गई ।
“अजसु पिटारी तासु सिर गइ गिरा मति फेरि ।”
सरस्वती ने अपनी योजना को देवताओं के कहने पर मंथरा के मति में डाल दिया और मंथरा ने कैकेयी को वही सुनाया ,समझाया और कहने के लिए उकसाया जो सरस्वती जी कहती थी । और यह कार्य सरस्वती से स्वयं राम ने करवाया था ।
एक अन्य कारण यह भी है कि कैकेयी वास्तविकता जानती थी । कैकेयी रथ चलाने की कला में निपुण थी । कैकेयी यह चाहती थी कि मेरे राम का पावन यश चौदहों भुवनों में फैल जाए । और यह बिना तप किये और बिना रावण का वध किये संभव नहीं था । इसलिए कैकई ने राम को वनवास भेजने का कदम उठाया था । कैकेयी यह जानती थी कि यदि राम अयोध्या के राजा बन जाएंगे तो रावण का वध नहीं कर पाएंगे । वध करने के लिए तप जरूरी है । कैकेयी यह चाहती थी कि राम केवल अयोध्या के ही नहीं , विश्व के समस्त प्राणियों के हृदय के सम्राट बनें । इसके लिए राम को वनवास भेजा था । देवलोक में जो योजना देवताओं ने बनाया था । उसके पीछे केवल रावण का वध करना था । महाराज अनरण्य ने रावण को जो श्राप दिया था , उसको पूर्ण होने में केवल 14 वर्ष ही बाकी थे । महाराजा अनरण्य ने रावण को श्राप दिया था कि मेरे वंश का राजकुमार ही तेरा वध करेगा । इस प्रकार राम ने रावण का वध करके देवलोक की योजना को पूर्ण किए थे ।
रामायण में 14 वर्ष राम को वनवास और महाभारत में 13 वर्ष वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास यानी 14 वर्ष पांडवों को वनवास भोगना पड़ा था । इसके पीछे ग्रह गोचर का प्रभाव भी रहता है । शनि चालीसा में लिखा गया है कि –
“राज मिलत वन रामहिं दीन्हा । कैकेइहूं की मति हरि लीन्हा ।
यानी शनि की दशा के कारण कैकेयी की मति मारी गई और भगवान राम को शनि के प्रभाव से वन – वन जाकर भटकना पड़ा ।
और उसी समय रावण पर भी शनि की दशा आती और वह राम के हाथों मारा गया । शनि ने अपनी दशा में एक को कीर्ति दिलाई और दूसरे को मुक्ति दिलाई ।
राम अपने वनवास के दिनों में 17 प्रमुख स्थानों पर रुके थे :——तमसा नदी , श्रृंगवेरपुर तीर्थ , कुरई गांव , प्रयाग , चित्रकूणत , सतना , दंडकारण्य , पंचवटी (नाशिक) , सर्व तीर्थ ,पर्ण शाला , तुंगभद्रा , शबरी का आश्रम , ऋष्यमूक पर्वत , कोडीकरई ,रामेश्वरम , धनुषकोडी , नुवारा एलिया पर्वत । इस प्रकार मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को वनवास , माता कैकेयी ने ईर्ष्या बस नहीं कार्यसिद्धि के लिए भेजा था ।