जहां मित्रता हो वहां संदेह नहीं करना चाहिए

एक फकीर बहुत दिनों से बादशाह के साथ रह रहा था । बादशाह का बहुत प्रेम , उस फकीर पर हो गया था । प्रेम भी इतना हो गया था कि बादशाह रात को भी उसे अपने कमरे में ही बुलाता था । कोई भी काम होता था तो दोनों ही साथ – साथ में करते थे ।

एक दिन दोनों शिकार खेलने गए और रास्ता भटक गए । भूखे प्यासे एक पेड़ के नीचे पहुंचे । पेड़ पर एक ही फल लगा था । बादशाह ने घोड़े पर चढ़कर फल को अपने हाथ से तोड़ा । बादशाह ने फल के छह टुकड़े किए और अपनी आदत के अनुसार पहला टुकड़ा फकीर को दिया । फकीर ने टुकड़ा खाया और बोला , ” फल बहुत स्वादिष्ट है , ऐसा फल मैंने कभी नहीं खाया था । एक टुकड़ा और दे दें ।” दूसरा टुकड़ा भी फकीर को मिल गया । फिर फकीर ने तीसरा टुकड़ा भी मांग लिया । इसी तरह फ़कीर ने 5 टुकड़े मांग कर खा लिए ।

जब फकीर ने आखिरी टुकड़ा मांगा तो बादशाह ने कहा , “यह सीमा से बाहर है , आखिर मैं भी तो भूखा हूं । मेरा तुम पर प्रेम है, पर तुम मुझसे प्रेम नहीं करते हो ।”और सम्राट ने फल का टुकड़ा अपने मुंह में रख लिया । मुंह में रखते ही , राजा ने उसे थूक दिया । क्योंकि वह बहुत कड़वा था । राजा बोला, ” तू पागल तो नहीं , इतना कड़वा फल कैसे खा गए ?” उस फकीर का उत्तर था , ” जिन हाथों से बहुत मीठे फल खाने को मिले हों, यदि उन्हीं हाथों से एक बार कड़वा फल मिले , तो मैं शिकायत कैसे करूं ? सब टुकड़े इसीलिए खाता गया ताकि आपको पता ना चले कि वह फल कड़वा है ।” यह सुनकर बादशाह बहुत शर्मिंदा हुआ कि मुझे फकीर पर शक नहीं करना चाहिए ।

इसलिए दोस्तों , जहां मित्रता हो वहां संदेह नहीं होना चाहिए । आओ ऐसे ही कुछ रिश्ते आपस में मिलकर बनायें जिसमें संदेह की गुंजाइश न हो ।

Rajendra Yadav

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