हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप की कथा

पंचमुखी शब्द का अर्थ होता है, पांच मुख वाला । हनुमान जी का पंचमुखी अवतार पांच मुख का है । हनुमान जी शक्ति , ऊर्जा , एकता और ज्ञान के प्रतीक हैं ।

वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब रावण ने माता सीता का अपहरण कर लिया तब रावण का संहार करने के लिए त्रेता युग में श्री राम ने रावण की सेना के साथ युद्ध किया था । श्री राम और रावण के बीच युद्ध चल रहा था जिसमें श्री राम के प्रहार से रावण की सेना खत्म हो रही थी । श्रीराम के साथ युद्ध के दौरान रावण का बेटा महाबलशाली मेघनाथ मार दिया गया । रावण जो अब तक घमंड में चूर था, वह राम सेना के तरफ से लक्ष्मण का पराक्रम सुनकर थोड़ा तनाव में आ गया । रावण को दु:खी देखकर रावण की मां कैकसी ने उसके पाताल में बसे दो भाइयों अहिरावण और महिरावण की याद दिलाई । तब रावण को याद आया कि यह दोनों तो उसके बचपन के मित्र रहे हैं । लंका का राजा बनने के बाद रावण को उन मित्रों की याद ही नहीं आई थी । रावण यह भली-भांति जानता था कि अहिरावण और महिरावण परम मायावी , तंत्र- मंत्र के महा पंडित , जादू- टोने के धनी और अराध्य देवी महामाया कामाक्षी के परम भक्त है ।

अहिरावण विश्रवा ऋषि का पुत्र और रावण का भाई (राक्षस) पाताल लोक का राजा था । रावण ने उन दोनों को बुलवाया और कहा कि वह अपने छल , बल और कौशल से श्री राम और लक्ष्मण का सफाया कर दें । इस तरह रावण ने अपने भाई अहिरावण से मदद मांगी थी । यह बात दूतों के जरिए विभीषण को पता चल गया । अहिरावण और महिरावण जैसे परम मायावी के शामिल होने से विभीषण चिंता में पड़ गए । विभीषण को अब भगवान श्री राम और लक्ष्मण की सुरक्षा व्यवस्था और कड़ी करनी पड़ी । इसके लिए उन्होंने सुरक्षा की जिम्मेदारी परम वीर हनुमान जी को सौंपना ही अच्छा समझा । हनुमान जी श्रीराम लक्ष्मण की देखभाल में लग गए ।

श्रीराम लक्ष्मण की कुटिया लंका में सुवेल पर्वत पर बनी थी । हनुमान जी ने भगवान श्री राम के कुटिया के चारों तरफ एक सुरक्षा घेरा खींच दिया ताकि कोई जादू- टोना , तंत्र- मंत्र का असर या मायावी राक्षस इसके भीतर नहीं घुस सके । अहिरावण और महिरावण श्री राम और लक्ष्मण को मारने के लिए उनकी कुटिया तक पहुंचे , पर इस सुरक्षा घेरा के आगे उनकी एक न चली , और वे असफल हो गए । ऐसे में उन दोनों ने एक चाल चली और महिरावण , विभीषण का रूप धरकर रात में कुटिया में घुस गया । हनुमान जी विभीषण समझ कर उसको अंदर जाने दिए । उस समय श्रीराम और लक्ष्मण पत्थर की सपाट शिलाओं पर गहरी नींद में सो रहे थे । दोनों राक्षसों ने बिना आहट के शिला समेत दोनों भाइयों को उठाकर अपने निवास पाताल की ओर लेकर चले गए ।

विभीषण लगातार सतर्क थे ,कुछ ही देर में ही पता चल गया कि कोई अनहोनी घट चुकी है । विभीषण को महिरावण पर शक था इसलिए उनको राम लक्ष्मण की जान की चिंता सताने लगी । विभीषण ने हनुमान जी को महिरावण के बारे में बताते हुए कहा कि आप महिरावण का पीछा करो । लंका में अपने रूप में घूमना , राम भक्त हनुमान के लिए ठीक नहीं था । इसलिए उन्होंने पक्षी का रूप धारण कर लिया और पक्षी के रूप में ही निकुंभला नगर पहुंच गए । निकुंभला नगरी में पक्षी रूप पकड़ कर गए तो हनुमान जी ने कबूतर और कबूतरी को आपस में बात करते हुए सुना । कबूतर कबूतरी से कह रहा था कि अब रावण की जीत पक्की है । अहिरावण और महिरावण राम लक्ष्मण को बलि चढ़ा देंगे । तो सारा युद्ध समाप्त हो जाएगा । कबूतर की बातों से ही हनुमान जी को पता चल गया कि दोनों राक्षस राम लक्ष्मण को सोते में ही उठाकर कामाक्षी देवी को बलि चढ़ाने के लिए पाताल लोक ले गए हैं । अब हनुमान जी ने वायु वेग से रसातल (पाताल) की ओर बढ़े और तुरंत वहां पहुंचे गये ।

हनुमान जी को रसातल के प्रवेश द्वार पर एक अनोखा पहरेदार मिला जिसका आधा शरीर वानर का और आधा मछली था । उस पहरेदार ने हनुमान जी को पाताल लोक में प्रवेश करने से रोक दिया । द्वारपाल ने हनुमान जी से बोला कि मुझको परास्त किए बिना तुम अंदर नहीं जा सकते हो । अब दोनों में लड़ाई शुरू हो गई । हनुमान जी की आशा के विपरीत वह द्वारपाल बहुत बड़ा बलशाली और कुशल योद्धा था । दोनों ही बड़े बलशाली थे । दोनों में भयानक युद्ध हुआ । इस युद्ध में द्वारपाल , हनुमान जी से परास्त हो गया यानी हनुमान जी ने अंत में उसे हरा दिए । लेकिन द्वारपाल की प्रशंसा करने लगे । और उस वीर द्वारपाल से , हनुमान जी ने पूछा कि हे वीर तुम अपना परिचय दो । क्योंकि तुम्हारा स्वरूप भी कुछ अजीब है । तब उस द्वारपाल ने उत्तर दिया कि मैं हनुमान का पुत्र हूं और एक मछली के पेट से पैदा हुआ हूं । मेरा नाम मकरध्वज है । हनुमान जी यह सुनकर आश्चर्य में पड़ गए । वह सोचने लगे कि मेरा तो शादी ही नहीं हुआ तो मेरा पुत्र कैसे हो गया फिर भी उस द्वारपाल की बात ध्यान से सुनने लगे । तब हनुमान जी से मकरध्वज ने कहा कि लंका दहन के बाद हनुमान जी समुद्र में अपने अग्नि शांत करने पहुंचे तो उनके शरीर से पसीने के रूप में तेज गिरा । उस समय मेरी मां ने आहार (भोजन) के लिए मुंह खोला था । संयोग से वह तेज मेरी माता जी ने अपने मुंह में ले लिया और गर्भवती हो गई । उसी से मेरा जन्म हुआ है । कुछ लोग बताते हैं कि जब हनुमान जी जब समुद्र लांघ रहे थे तो उसी समय उनका वीर्य समुद्र में टपक पड़ा और उस वीर्य को मछली निकल गई तो उससे मकरध्वज पैदा हुए थे ।

हनुमान जी जब यह बात सुने तो मकरध्वज को बताये कि मैं ही हनुमान हूं और तुम मेरे पुत्र हो । मकरध्वज , हनुमान जी के चरण स्पर्श किए और हनुमान जी ने भी अपने बेटे को गले से लगा लिया । और हनुमान ने अपने वहां आने का पूरा कारण बताया । हनुमान जी ने अपने पुत्र से कहा कि अपने पिता के स्वामी की रक्षा में तुम सहायता करो । मकरध्वज ने हनुमान जी को बताया कि कुछ ही देर में राक्षस अहिरावण , राम और लक्ष्मण को बलि देने के लिए आने वाले हैं । इसलिए आप रूप बदलकर कामाक्षी देवी के मंदिर में जाकर बैठ जाइए और राक्षसों को सारी पूजा झरोखे से करने के लिए कहिए । हनुमान जी ने पहले मधुमक्खी का भेष पकड़कर मां कामाक्षी देवी के मंदिर में घुस गए । अन्दर पहुंचकर हनुमान जी ने मां कामाक्षी को नमस्कार कर अपनी सफलता की कामना किए और पूछे कि हे माताजी क्या आप वास्तव में श्री राम और लक्ष्मण की बलि चाहती हैं ? हनुमान जी के इस प्रश्न पर मां कामाक्षी ने उत्तर दिया कि नहीं ! मैं तो उस दुष्ट अहिरावण और महिरावण की बलि चाहती हूं । यह दोनों मेरे भक्त तो हैं पर अधर्मी और अत्याचारी भी हैं । आप अपना प्रयत्न करो , सफलता अवश्य मिलेगी ।

मंदिर में 5 दीपक अलग-अलग दिशाओं में और स्थल पर जल रहे थे । मां भवानी ने कहा कि यह दीप अहिरावण ने मेरी प्रसन्नता के लिए जलाए हैं । जिस दिन यह दीपक एक साथ बुझा दिए जाएंगे , उस दिन उसका अंत सुनिश्चित हो जाएगा । इसी बीच में गाजे-बाजे का शोर सुनाई पड़ने लगा । अहिरावण और महिरावण बलि चढ़ाने के लिए आ रहे थे । हनुमान जी ने मां कामाक्षी का रूप पकड़ा और देवी के स्थान पर बैठ गए । जब अहिरावण और महिरावण मंदिर में प्रवेश करने वाले ही थे , तभी हनुमान जी का महिला स्वर (भवानी की आवाज में) गूंजा । हनुमान जी बोले मैं कामाक्षी देवी हूं और आज मेरी पूजा झरोखे से करो । झरोखे से पूजा आरंभ हुई । ढेर सारा चढ़ावा मां कामाक्षी को झरोखे से चढ़ाये जाने लगा । अंत में बंधक राम और लक्ष्मण को बलि के रूप में उसी झरोखे के रास्ते से डाला गया । दोनों बंधन में बेहोश थे । हनुमान जी ने तुरंत बंधन से मुक्त किया । अब पाताल लोक से निकलने की बारी थी । परंतु उससे पहले मां कामाक्षी के सामने अहिरावण और महिरावण की बलि देकर उनकी इच्छा पूरी करना और दोनों राक्षसों को उनके किए की सजा देना शेष था । अब हनुमान जी ने मकरध्वज को कहा कि वह अचेत अवस्था में लेटे हुए भगवान राम और लक्ष्मण का विशेष ख्याल रखें और उसके साथ मिलकर दोनों राक्षसों के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया । लेकिन यह युद्ध इतना आसान नहीं था । अहिरावण और महिरावण बड़ी मुश्किल से मरते थे और फिर 5 – 5 के रूप में जिंदा हो जाते थे । इस विकट स्थिति में मकरध्वज ने बताया कि अहिरावण की एक पत्नी नागकन्या है । अहिरावण उसको जबरदस्ती उठाकर लाया है परंतु वह नाग कन्या उसे पसंद नहीं करती है फिर भी मन मार कर उसके साथ हैं । वह नागकन्या अहिरावण का पूरा राज (सच्चाई) जानती है । उसी नागकन्या से अहिरावण के मौत का राज पूछा जाए । हे पिताजी (हनुमान जी) आप उस नागकन्या के पास जाकर उससे सहायता मांगिये ।

मकरध्वज ने राक्षसों को युद्ध में उलझा रखा और उधर हनुमान जी अहिरावण की पत्नी नागकन्या के पास पहुंचे । नागकन्या से उन्होंने कहा कि यदि तुम अहिरावण के मृत्यु का भेद बता दो तो हम उसे मार कर तुम्हें उसके चंगुल से आजाद करा देंगे । अहिरावण की पत्नी ने कहा कि मेरा नाम चित्रसेना है । मैं भगवान विष्णु की भक्त हूं । अहिरावण मेरे रूप पर मर मिटा और मेरा अपहरण करके यहां कैद किया हुआ है । परंतु मैं उसको नहीं चाहती हूं , फिर भी मैं अहिरावण के मृत्यु का भेद तभी बताऊंगी , जब मेरी इच्छा पूरी की जाएगी । हनुमान जी ने अहिरावण की पत्नी नागकन्या चित्रसेना से पूछा कि अहिरावण की मृत्यु का रहस्य बताने के बदले में क्या चाहती हो ? आप मुझे अपनी शर्त बताइए , मैं उसे जरूर मानूंगा । तब चित्रसेना ने कहा कि दुर्भाग्य से अहिरावण जैसा असुर मुझे हरण करके यहां ले आया है, इससे मेरा जीवन खराब हो गया है । मैं अब अपने दुर्भाग्य को सौभाग्य में बदलना चाहती हूं । आप अगर मेरा विवाह श्री राम से कराने का बचन दें , तो मैं अहिरावण के वध का रहस्य बताऊंगी । हनुमान जी सोच में पड़ गए कि भगवान श्री राम तो एक पत्नीनिष्ठ हैं । अपनी धर्मपत्नी देवी सीता को मुक्त कराने के लिए असुरों से युद्ध कर रहे हैं । वह किसी और से विवाह की बात तो कभी नहीं स्वीकार करेंगे । मैं कैसे बचन दे सकता हूं । फिर सोचने लगे कि यदि समय पर उचित निर्णय नहीं लिया तो अनर्थ हो जायेगा । स्वामी श्रीराम और लक्ष्मण का प्राण संकट में है क्या करूं ? असमंजस की स्थिति में बेचैन हनुमान जी ने ऐसी राह निकाली कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे ।

हनुमान जी बोले कि तुम्हारी शर्त स्वीकार है । परंतु हमारी भी एक शर्त है कि यह विवाह तभी होगा जब तुम्हारे साथ भगवान राम जिस पलंग पर आसीन होंगे , वह सही सलामत रहना चाहिए । अगर वह टूटा तो इसे अपशगुन मानकर वचन से मैं पीछे हट जाऊंगा । तब चित्रसेना यह सोच कर तैयार हो गयी कि जब महाकाय अहिरावण के बैठने से पलंग नहीं टूटता है तो भला राम के बैठने से पलंग कैसे टूटेगा । उसने अहिरावण सहित सभी राक्षसों के अंत (मृत्यु) का सारा भेद बता दिया । चित्रसेना ने कहा कि यह दोनों राक्षसों के बचपन की बात है कि इन दोनों के कुछ शरारती राक्षस मित्रों ने कहीं से एक भ्रामरी को पकड़ लिया । और मनोरंजन के लिए उस भ्रामरी को कांटे से बार-बार छेड़ रहे थे । भ्रामरी साधारण नहीं थी , वह भी बहुत मायावी थी । किंतु किसी कारण बस वह पकड़ में आ गई थी । भ्रामरी की पीड़ा सुनकर अहिरावण और महिरावण को दया आ गई और अपने मित्रों से लड़कर उसे छुड़ा लिया । मायावी भ्रामरी का पति भी अपनी पत्नी की पीड़ा को सुनकर आया था । अपनी पत्नी की मुक्ति से प्रसन्न होकर उस भंवरे ने वचन दिया कि तुम्हारे उपकार का बदला, हम सभी भ्रमर जाति मिल कर चुकायेंगे । यह भंवरे अधिकतर उनके शयन कक्ष के पास रहते हैं । यह सब बड़ी भारी संख्या में हैं । दोनों राक्षसों को जब भी मारने का प्रयास हुआ है , तो यह मरने को हो जाते हैं तब यह भंवरे उनके मुख में एक बूंद अमृत का डाल देते हैं । इस अमृत के कारण यह दोनों राक्षस मर कर भी जिंदा हो जाते हैं । इनके कई- कई रूप उसी अमृत के कारण है । इन्हें जितनी बार फिर से जीवनदान दिया गया , उनके उतने नए रूप बन गये हैं । इसलिए आपको पहले इन भवरों को मारना होगा ।

हनुमान जी रहस्य जान कर लौटे और इधर मकरध्वज ने अहिरावण , महिरावण को युद्ध में उलझा कर रखा था । तो हनुमान जी ने भंवरों को मारना शुरू किया । वे भंवरे हनुमान जी के सामने टिक न सके और जब सारे भंवरे खत्म हो गए , केवल एक भंवरा बचा । वह। बचा हुआ भंवरा हनुमान जी के चरणों में गिर गया । और हनुमान जी से अपनी प्राण रक्षा के लिए प्रार्थना करने लगा । हनुमान जी को दया आ गई । उन्होंने उस बचे हुए भंवरे को क्षमा करते हुए यह काम सौंपा । हनुमान जी बोले कि मैं तुम्हें प्राण दान देता हूं । किंतु इस शर्त के साथ कि तुम यहां से तुरंत चले जाओगे । और अहिरावण के पत्नी के पलंग की पाटी में घुसकर जल्दी से जल्दी उसे पूरी तरह खोखला बना दोगे । भंवरा तुरंत चित्रलेखा के पलंग की पाटी में घुसने के लिए चला गया । इधर अहिरावण और महिरावण को अपने चमत्कार के लुप्त होने से बहुत आश्चर्य हुआ । परंतु उन्होंने मायावी युद्ध चालू रखा । भंवरो को हनुमान जी ने समाप्त कर दिया , फिर भी हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों अहिरावण और महिरावण का अंत नहीं हो पा रहा था । यह देखकर हनुमान जी को चिंता होने लगी । फिर उन्हें कामाक्षी देवी का वचन याद आया । क्योंकि देवी ने बताया था कि अहिरावण की सिद्धि है कि जब पांचों दीपक एक साथ बुझेंगे, तभी वे राक्षस नए-नए रूप धारण नहीं कर पाएंगे । और उनका बध हो सकेगा । हनुमान जी ने तत्काल पंचमुखी रूप धारण कर लिया । उत्तर दिशा में वराह मुख , दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख , पश्चिम में गरुड़ मुख , आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख था । इसके बाद हनुमान जी ने अपने पांचों मुख द्वारा एक साथ पांचो दीपकों को बुझा दिया । अब राक्षसों के बार -बार पैदा होने और लंबे समय तक जिंदा रहने की सारी आशंकाएं समाप्त हो गई थी । इसलिए हनुमान जी और मकरध्वज के हाथों शीघ्र ही दोनों (अहिरावण और महिरावण) राक्षस मारे गए ।

इसके बाद हनुमान जी ने श्री राम और लक्ष्मण की मूर्छा दूर करने के उपाय के किए । तो दोनों भाई श्रीराम और लक्ष्मण होश में आ गए । चित्रलेखा भी वहां आ गई थी । हनुमान जी ने शर्त के अनुसार श्रीराम से कहा कि हे प्रभु , आप अहिरावण और महिरावण के छल और बंधन से मुक्त हुए । परंतु इसके लिए हमें इस नाग कन्या की सहायता लेनी पड़ी थी । अहिरावण इसे बलपूर्वक उठा लाया था । वह आपसे विवाह करना चाहती है, कृपया उससे विवाह कर अपने साथ ले चलें । इससे उसे भी मुक्ति मिलेगी । श्री राम , हनुमान जी की बात सुनकर घबरा गए । इससे पहले कि वह कुछ कह पाते , हनुमान जी ने ही कह दिया कि हे भगवान आप तो मुक्तिदाता है । अहिरावण को मारने का भेद इसी ने बताया है , इसके बिना हम उसे मारकर आप को बचाने में सफल नहीं हो पाते । कृपा निधान इसे भी मुक्ति मिलनी चाहिए । परंतु आप चिंता ना करें हम सब का जीवन बचाने के लिए बस इतना ही कीजिए कि आप इस पलंग पर बैठिए । बाकी का काम मैं सम्पन्न करवाता हूं । हनुमान जी सारी कार्य इस तेजी से करते जा रहे थे कि इससे श्री राम और लक्ष्मण दोनों चिंता में पड़ गए । वह कोई कदम उठाते तब तक हनुमान जी ने भगवान राम की बांह पकड़ ली । हनुमान जी ने भावावेश में प्रभु श्री राम की बांह पकड़कर चित्र सेना के सजे- धजे विशाल पलंग पर बैठा दिए । श्रीराम कुछ समझ पाते कि तभी पलंग की खोखली पाटी चरमरा कर टूट गई ,और पलंग धराशाई हो गया । चित्रसेना भी जमीन पर गिर गई । हनुमान जी हंसने लगे और फिर चित्रसेना से बोले कि अब तुम्हारी शर्त तो पूरी नहीं हुई , इसलिए यह विवाह नहीं हो सकता है । तुम मुक्त हो और हम तुमको तुम्हारे लोक भेजने का प्रबंध करता हूं ।

चित्रसेना समझ गई कि मेरे साथ छल हुआ है । उसने कहा कि उसके साथ छल किया गया है । मर्यादा पुरुषोत्तम के सेवक उनके सामने ही किसी के साथ छल करे यह तो बहुत अनुचित है । मैं हनुमान जी को श्राप दूंगी यह कहकर चित्रसेना हनुमान जी को श्राप देने जा रही थी , कि श्री राम का सम्मोहन भंग हुआ और वह इस पूरे घटनाक्रम को समझ गए । श्रीराम ने चित्रसेना को समझाया कि मैंने एक पत्नी धर्म से बंधे होने का संकल्प लिया है इसलिए हनुमान जी को यह करना पड़ा था । उन्हें क्षमा कर दो । क्रोधित चित्रसेना तो उनसे विवाह की जिद्द पकड़ कर बैठी थी । श्री राम ने कहा कि मैं जब द्वापर में श्री कृष्णावतार लूंगा तब तुम्हें सत्यभामा के रूप में अपनी पटरानी बनाऊंगा । इससे वह मान गई । हनुमान जी ने चित्रसेना को उसके पिता के पास पहुंचा दिया । चित्र सेना को प्रभु श्री राम ने अगले जन्म में पत्नी बनाने का वरदान दिया था । भगवान विष्णु की पत्नी बनने की चाह में उसने स्वयं को अग्नि में भस्म कर लिया । श्री राम , लक्ष्मण और हनुमान ने मकरध्वज को पाताल लोक का राजा बना कर वापस लंका में सुवेल पर्वत पर लौट आए ।

हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप की पूजा करने से आत्मविश्वास बढ़ता है , और अनजाने भय से मुक्ति मिलती है । मानसिक तनाव दूर होता है । इस स्वरूप की तस्वीर या प्रतिमा के सामने बैठकर और दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करना चाहिए ।

Rajendra Yadav

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