बुढ़िया माई की प्राचीन मंदिर कुसम्ही ( गोरखपुर )

बुढ़िया माई की यह प्राचीन मंदिर पूर्वी उत्तर प्रदेश (पूर्वांचल ) के गोरखपुर जिला के गोरखपुर शहर के पूरब कुसम्ही जंगल के बीच में स्थित है । गोरखपुर मुख्यालय से लगभग 12 किलोमीटर पूरब , गोरखपुर- कुशीनगर हाईवे(नेशनल मार्ग नंबर 28) पर कुसम्ही जंगल के बीच में बुढ़िया माई का मंदिर है ।

इस मंदिर में लाखों भक्तों की भीड़ देश- विदेश से आती है । श्रद्धालु आस्था और विश्वास के साथ पूजा- अर्चना करते हैं , और मन्नतें मांगते हैं और बुढ़िया माता उनकी मुरादें पूरी करती हैं । यहां दोनों नवरात्रि (चैत्र नवरात्रि और शारदीय नवरात्रि) के अलावा आम दिनों में भी लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ होती है और यहां मेला लगता है । यहां जागता- जालपा देवी के रूप में प्रसिद्ध बुढ़िया माई की शक्ति चमत्कारी है । बुढ़िया माई मंदिर जाने के लिए गोरखपुर विश्वविद्यालय चौराहे से कुशीनगर कसया जाने वाली किसी भी सवारी गाड़ी से पहुंचा जा सकता है । कसया रोड पर स्थित विनोद वन के सामने मंदिर के मुख्य गेट से कुसम्ही जंगल में उत्तर तरफ लगभग एक किलोमीटर पैदल चलना पड़ता है ।

बताया जाता है कि पहले यहां बहुत घना जंगल था । जिसमें एक नाला बहता था , जिसका नाम तुर्रा नाला था । उस नाले के ऊपर यहां एक लकड़ी का पुल था । एक बारात आकर नाले के पूरब तरफ रूकी । वहां सफेद वस्त्रों में एक बूढ़ी मां बैठी थी । उसने नाच मंडली से नाच दिखाने को कहा । नाच मंडली वाले बुढ़िया मां का मजाक उड़ाते हुए चले गए । लेकिन जोकर ने बांसुरी बजा कर 5 बार घूम कर नाच दिखा दिया । बुढ़िया माई ने प्रसन्न होकर जोकर को आगाह किया की वापसी आते समय तुम सब के साथ पुल मत पार करना । तीसरे दिन बारात लौटी तो वही बुढ़िया पुल के पश्चिम तरफ मौजूद थी । बारात जब पुल पर बीच में आई , तो पुल टूट गया । और पूरी बारात बैल गाड़ी सहित नाले में डूब गयी । केवल जोकर बचा , जो बारात के साथ नहीं था । इसके बाद बुढ़िया माई अदृश्य हो गयी । मरने से बचे इकलौते जोकर ने इस बात का खुलासा किया । तभी से नाले के दोनों तरफ का स्थान बुढ़िया माई के नाम से जाना जाता है ।

बुढ़िया माई का मंदिर नाले के दोनों तरफ बना हैं ।बुढ़िया माई का दो मंदिर है , दोनों के बीच में एक प्राचीन तुर्रा नाला बहता है । जब नाले में अधिक पानी रहता है तो नाव के सहारे भक्तगण इस पार से उस पार जाते हैं । इस बुढ़िया माई के मंदिर में बिहार , नेपाल से भी बड़ी संख्या में भक्तगण आते हैं । मान्यता है कि श्रद्धा और विश्वास के साथ माता जी के सामने सिर झुकायेंगे , तो सामने खड़ी मौत भी टल जाती है । और सब की मन्नतें इस मां के दरबार में पूरी होती है । कोई भी दरबार से खाली हाथ वापस नहीं लौटता है । मां की कृपा सभी भक्तों पर बरसती है ।

यहां के मंदिर के पुजारी बाबा राजेंद्र महाराज का कहना है कि श्रद्धालुओं की भारी भीड़ को देखते हुए विशेष व्यवस्था की जाती है । सुरक्षा और सुविधा का ध्यान रखा जाता है । साफ- सफाई और पेयजल की पूरी व्यवस्था की जाती है । देवी के मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यह मंदिर बहुत ही चमत्कारी वृद्ध महिला के सम्मान में बनाया गया था । वहीं कुछ लोगों का कहना है कि पहले यहां थारू जाति के लोग निवास करते थे । वे (थारू) जंगल में 3 पिण्ड बनाकर वनदेवी के रूप में पूजा करते थे । थारूओं को अक्सर इस पिंड के आसपास सफेद कपड़े में एक बूढ़ी महिला दिखाई दिया करती थी । और कुछ ही पल में वो आंखों से ओझल भी हो जाती थी । कहा जाता है कि यह बूढ़ी औरत जिससे नाराज हो जाती थी , उसका सर्वनाश निश्चित हो जाता था । और जिस से प्रसन्न होती थी , उसकी हर मनोकामना पूरी कर देती थी । इस प्राचीन मंदिर का नाम बुढ़िया माई का मंदिर है । कुसम्ही जंगल के अंदर स्थित इस मंदिर पर नवरात्रि के समय मेला लगता है ।

दूर-दूर से भक्त गण देवी मां का दर्शन करने आते हैं । मंदिर के पुजारी राजेंद्र सोखा , रामानंद और रामाश्रय बताते हैं कि प्राचीन समय में भी इमिलिया उर्फ बिजहरा गांव से होकर यह तुर्रा नदी बहती थी । इस पर गांव वालों ने पहले पुल बना दिया था । मंदिर और पुल के रास्ते में एक बुढ़िया बैठा करती थी । बुढ़िया माई अपने भक्तों को असमय में काल के गाल में जाने से बचाती हैं । बुढ़िया माई मंदिर से जुड़ी मान्यता है कि जो भक्त सच्चे हृदय से यहां आकर माताजी की पूजा करता है वह कभी भी असमय काल के गाल में नहीं जाता है । माता अपने भक्तों की हमेशा रक्षा करती है । पूरे नवरात्रि में मंदिर क्षेत्र में मेला लगता है । इसके साथ मुंडन, विवाह सहित कई आयोजन मंदिर के समीप होते हैं ।

बुढ़िया माई का महात्म्य दूर-दूर से भक्तों को खींच लाता है । मां अपने भक्तों की तमाम मनोकामनाओं को पूरी करती हैं और हर संकट से उन्हें बचाती हैं । सच्चे भक्तों को अलग-अलग रूपों में मां दर्शन देती है , और उन्हें सही रास्ता भी दिखाती हैं । माताजी का बूढ़ा रूप निराला है । सफेद बाल , सफेद साड़ी और हाथ में छड़ी लिए मां का स्वरूप निराला है । यह छवि भक्तों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित कर लेता है । दूर-दूर तक साखू , सागौन के पेड़ों की लंबी कतारों के बीच बुढ़िया माता मंदिर का दृश्य अत्यंत मनोहर दिखता है । इस मंदिर पर विवाह और परिवार के अन्य संस्कारों को संपन्न कराना काफी शुभ माना जाता है ।

रीजनल टूरिस्ट ऑफिसर रविंद्र कुमार मिश्रा के अनुसार बुढ़िया माई मंदिर के पास नाला के किनारे घाट बनेगा , लाइटिंग लगेगा , मंदिर के आसपास सुंदरीकरण होगा । मंदिर तक पहुंचने के लिए कच्ची सड़कों के सहारे श्रद्धालुओं को जाना पड़ता था , किंतु अब मेन गेट से मंदिर तक इंटरलॉकिंग हो जाने से श्रद्धालुओं का आवागमन काफी सुविधाजनक हो गया है । श्रद्धालुओं को बैठने के लिए और बारिश के समय छिपने के लिए यात्री शेड का निर्माण होगा । जिसमें कम से कम 100 आदमी बैठ सकें । टॉयलेट , बाथरूम , बिजली व पानी की उचित व्यवस्था किया जाना है । बुढ़िया माई के मंदिर में प्रतिदिन लगभग 400 श्रद्धालु आते हैं , नवरात्रि में रोजाना 1500 से 20 00 श्रद्धालु आते हैं । चार पहिया वाहन रोजाना 150 से 200 , दो पहिया वाहन रोजाना 100 आते हैं । यहां पर टॉयलेट , बाथरूम , बिजली यात्री शेड , तालाब का रेनोवेशन , तालाब के दोनों तरफ घाट , लाइटिंग की सुविधा आदि की व्यवस्था की जा रही है ।

Rajendra Yadav

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