इस नीम को हमारे पिताजी ने 9 साल पहले रोपित किया था। पहले पानी देते थे किन्तु अब वर्षों से उसे पानी की भी जरूरत नहीं होती थी। पिताजी किसी को दातून तोडने नहीं देते थे कि अभी यह बच्चा है। हम इसकी छाया में दोपहरी बिताते थे। पशुओं के लिये भी छाया देती थी। वर्षों से इसपर फल भी आते थे। पक्षियों का भी यहां आना जाना था/ अब सब समाप्त हो गया।
29/30 मई की रात्रि में आये तूफान में हमारे घर के पिछवाडे का करकट तो उठा ही। लोगों की जान बची किन्तु हम सभी की शरणदाता हमारा प्यारा नीम का पेड शैतान रूपी तूफान की भेंट चढ गया।

जिसे सींचा, प्यार किया, जिसने हम सभी का संरक्षण किया, छाया दिया, यह नहीं पूछा कि तुम किस जाति के हो, किस धर्म के हो, हमें तो कभी एक लोटा पानी नहीं दिये। अब उसी पर भारी मन से कुल्हाडी चलाना है।
क्या है उपर वाले का मजाक!