
खबरों / विचारों का धंधा करते कारपोरेट स्वामित्व वाले प्रिंट और विजुअल मीडिया ”कंपनियों” से आप किस बात की उम्मीद करते हैं कि इनके अन्दर आपको कारपोरेट के गुण नहीं मिलेंगे..!! दूकान में खबर बिकती है और उस प्रोडक्ट को बनाने वाले कामगारों / पेशेवरों को ”पत्रकार” कहा जाता है .. बस यही एक गारंटी है न ”निष्पक्ष रत्न” देने को ..!! ऐसे तो मालिक ..निष्पक्षता के नाम पर हमने कभी मालिकानों तो कभी कामगारों के अपने वैचारिक झुकाव, नापसंदी, निजी स्वार्थ / मजबूरी जैसे बहुत से सामान ख़रीदे हैं इन प्रतिष्ठानों से खबरों के रैपर में .. और आप सिखाते हैं कि इन्हें चौथा खंभा कहते हैं … जब कहा होगा तब ये खंभे लोक के सरोकारों की रखवाली करते रहे होंगे .. आज शायद इनपर बनिये की तिजोरी सम्हालने का काम ज्यादा है बाज़ार के नियमों पर काम करते हुए। बिकी मीडिया और निष्पक्ष / जिम्मेदार मिडिया .. इन शब्दों को सुविधानुसार इस्तेमाल करना बंद करिये .. ”हमारे -आपके इस सस्ते खेल के बीच इसमें लगे सार्थक लोगों के काम जाया हो जाते हैं” बाज़ार में बाजारू नहीं होशियार ग्राहक होने की आदत डालनी होगी।