बचपन की यादें

एक बार विद्यालय के कुछ छात्रों ने मिलकर एक पहाड़ी क्षेत्र में पिकनिक पर जाने की योजना बनाई । सभी ने यह तय किया कि वे अपने – अपने घरों से खाने – पीने की कुछ ना कुछ सामान लेकर आएंगे । इससे पिकनिक का आनंद दोगुना हो जाएगा । एक छात्र बोला , ‘मैं खीर लाऊंगा ।’ दूसरा बोला, ‘ मैं पूरी – सब्जी ले आऊंगा ।’ तीसरा बोला , ‘ मैं मिठाई लाऊंगा ।’ चौथा बोला , ‘मैं तो अपने घर से कुछ फल ले आऊंगा ।’ सभी छात्रों ने अपने – अपने सामान के बारे में बता दिया । केवल एक छात्र चुप था ।

स्कूल से घर लौटने पर उसने यह बात अपनी मां को बताई । बेटे की बात सुनकर मां उदास हो गई । बात यह थी कि घर में इन दिनों गरीबी छाई हुई थी । खाने – पीने का ढंग का कोई सामान नहीं था । कुछ खजूर जरूर पड़े हुए थे । कुछ ही देर बाद घर में पिता ने प्रवेश किया । मां ने पिता को बेटे की पिकनिक के बारे में बताया । दुर्भाग्यवश उस दिन पिताजी की जेब भी खाली थी । लेकिन वह अपने मासूम बेटे का दिल नहीं तोड़ना चाहते थे । उन्होंने निश्चय किया कि वह पड़ोसियों से उधार मांग कर बेटे की इच्छा अवश्य पूरी करेंगे ।

पिता पड़ोसी के घर जाने लगे तो बेटा दौड़कर उनके पास गया और बोला ,’ पिताजी ,आप कहां जा रहे हैं ?’ पिताजी बोले , ‘बेटा ,पड़ोसी के यहां कुछ रुपए उधार लेने जा रहा हूं ताकि तुम पिकनिक पर कुछ ढंग का सामान ले जा सको । ‘ पिता की बातें सुनकर बेटा बोला ,’ नहीं-नहीं पिताजी , उधार मांगना उचित नहीं है । वैसे भी मेरा मन पिकनिक पर जाने का नहीं है । यदि जाना हुआ तो घर में कुछ खजूर पड़े हैं , मैं वही ले जाऊंगा । खजूर बेहद पौष्टिक एवं लाभदायक होते हैं । बेटे की बात सुनकर मां व पिता दोनों भावुक हो गए ।

समझदारी भरी बातें करने वाला उनका यही बेटा बाद में लाला लाजपत राय के नाम से प्रसिद्ध हुआ

भारत के एक प्रथम एवं महान स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपत राय का जन्म 28 जनवरी 1865 को गांव – दूधीके , जिला – मोगा‌‌ , पंजाब भारत में हुआ था । यह जैन धर्म के थे । गुलाबी देवी और राधाकृष्णन इनके पालक थे । इनके दो बच्चे प्यारे लाल अग्रवाल और अमृतराय अग्रवाल थे । इनको पंजाब केसरी भी कहा जाता है । ये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में गरम दल के तीन प्रमुख नेताओं लाल – बाल – पाल में से एक थे ।

ये सन् 1928 में लाहौर में , साइमन कमीशन के विरूद्ध एक प्रदर्शन में हुए लाठीचार्ज में , बुरी तरह से घायल हो गए थे । उस समय इन्होंने कहा था –

मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी , ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।

और वही हुआ भी लाला के बलिदान के 20 साल के अंदर ही ब्रिटिश साम्राज्य का सूर्य अस्त हो गया । 63 वर्ष की उम्र में 17 नवंबर 1928 को लाहौर , पाकिस्तान प्रांत में इन्हीं लाठी की वजह से लाला जी का देहांत हो गया ।

लाठी का बदला लेने के लिए पूरा देश उत्तेजित हो उठा और चंद्रशेखर आजाद , भगत सिंह , राजगुरु , सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों ने संकल्प लिया । और इन देशभक्तों ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरी करते हुए , 17 दिसंबर 1928 को एक महीना बाद ब्रिटिश पुलिस के अफ़सर सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और लाला जी की मौत के बदले सांडर्स की हत्या के जुर्म में राजगुरु , सुखदेव और भगत सिंह की फांसी की सजा सुनाई गई । पंजाब नेशनल बैंक , लक्ष्मी बीमा कंपनी की स्थापना भी किए थे ।

लाला लाजपत राय , बाल गंगाधर तिलक , बिपिन चंद्र पाल , इन तीनों त्रिमूर्ति को ही लाल ,बाल और पाल कहते हैं । इन तीनों ने मिलकर भारत में पूर्ण स्वतंत्रता की मांग किए थे । बाद में पूरा देश उनके साथ हो गया था । हरियाणा , रोहतक , हिसार में वकालत भी किए थे । दयानंद सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाए ।

इस प्रकार बचपन में , दूसरे के सामने हाथ न फैलाने वाला छात्र , आगे चलकर महान स्वतंत्रता सेनानी , समाज सेवक बनकर देश के लिए अपना बलिदान दिया ।

Rajendra Yadav

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