हरिवंश वर्णन (श्री कृष्ण कथा)

गरुड़ पुराण के अनुसार , ब्रह्मा जी ने कहा —-अब मैं हरिवंश का वर्णन करूंगा , जो भगवान कृष्ण के महात्म्य से परिपूर्ण होने के कारण श्रेष्ठतम है । पृथ्वी पर धर्म आदि की रक्षा और अधर्म आदि के विनाश के लिए वसुदेव तथा देवकी से कृष्ण और बलराम का प्रादुर्भाव हुआ था । जन्म के कुछ ही दिन बाद कृष्ण ने पूतना के स्तनों को दृढ़ता पूर्वक पीकर उसे मृत्यु के पास पहुंचा दिया था ।

तदनन्तर शकट (छकड़े) को बाल क्रीड़ा में उलट कर सभी को विस्मित करते हुए इन्होंने यमलार्जुन-उद्धार , कालियनाग- दमन , धेनुकासुर- वध , गोवर्धन- धारण आदि अनेक लीलाएं की और इंद्र द्वारा पूजित होकर पृथ्वी को भार से भी विमुक्त किया तथा अर्जुन की रक्षा के लिए प्रतिज्ञा की । इनके द्वारा अरिष्टासुर आदि अनेक बलवान शत्रु मारे गए । इन्होंने केशी नामक दैत्य का वध किया तथा गोपों को संतुष्ट किया । उसके बाद चाणूर और मुष्टिक नामक मल्ल इनके द्वारा ही पराजित हुए । ऊंचे मंच पर अवस्थित कंस को वहां से नीचे पटक कर इन्होंने ही मारा था । श्री कृष्ण की रुक्मिणी , सत्यभामा आदि आठ प्रधान पत्नियां थी । इनके अतिरिक्त महात्मा श्री कृष्ण की सोलह हजार अन्य स्त्रियां थीं । उन स्त्रियों से उत्पन्न हुए पुत्र-पौत्रों की संख्या सैकड़ों हजारों में थी । रुक्मिणी के गर्भ से प्रद्युम्न उत्पन्न हुए , जिन्होंने शम्बरासुर का वध किया था । इनके पुत्र अनिरुद्ध हुए , जो बाणासुर की पुत्री उषा के पति थे ।

अनिरुद्ध के विवाह में कृष्ण और शंकर का महा भयंकर युद्ध हुआ और इसी युद्ध में हजार भुजाओं वाले बाणासुर की दो भुजाओं को छोड़कर शेष सभी भुजाएं कृष्ण के द्वारा काट डाली गई । नरकासुर का वध इन्हीं महात्मा श्री कृष्ण ने किया था । नंदनवन से बलात परिजात वृक्ष सत्यभामा के लिए ये ही उखाड़ कर लाए थे । बल नामक दैत्य , शिशुपाल नामक राजा , तथा द्विविद नामक बन्दर का वध इन्हीं के द्वारा हुआ था । अनिरुद्ध से वज्र नाम का पुत्र हुआ । कृष्ण के स्वर्गारोहण के पश्चात वही इस वंश का राजा बना था ।

सांदीपनि नामक मुनि कृष्ण के गुरु थे । कृष्ण ने ही गुरू सांदीपनि की पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा को पूर्ण किया था । मथुरा में उग्रसेन और देवताओं की रक्षा इन्होंने ही की थी ।

Rajendra Yadav

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