मनुष्य के लिए ‘तुलसी’ प्रकृति का एक ऐसा वरदान है , जो अनेक बीमारियों के निवारण में ‘रामबाण’ का काम करता है । तुलसी को धर्म ग्रंथों में विष्णु प्रिया, कृष्ण प्रिया , हरि प्रिया, पावनी, सुभगा वगैरह नामों से पुकारा गया है ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार विष्णु भगवान से अभिशिप्त वृंदा नाम की सती स्त्री विष्णु पर पूजार्थ अर्पण करने के लिए भूलोक में तुलसी के पौधे के रूप में बनकर आई । दूसरी कथा में बताया गया है कि एक पतिव्रता स्त्री, जिसके सौंदर्य की तुलना न हो सकने से उसका नाम तुलसी पड़ा । रोगादि व्याधियों का नाश करने में कोई तुलना नहीं है , वह तुलसी है । इसके पत्तों का प्रयोग शरीर को पवित्र करता है । कहा जाता है कि तुलसी के घर में वास होने से घर सदा पवित्र रहता है ,और बिमारी वहां से चली जाती है । तुलसी के पौधों के पत्ते , मूल , तना , फल और बीज आदि सभी भाग औषधि के काम में आते हैं । जुकाम , सिरदर्द और ज्वर में तुलसी के पत्तों का रस शहद के साथ देने में शीघ्र लाभ मिलता है । तुलसी के बीजों को पीसकर गाय के दूध के साथ देने से उल्टी एवं दस्त बंद हो जाते हैं । तुलसी की चाय शरीर को स्फूर्ति और ताजगी देती है । चरक संहिता में तुलसी को दमे की महत्वपूर्ण औषधि बताया गया है ।दोपहर के भोजन के बाद या अन्य किसी समय भी तुलसी के छ: सात पत्ते प्रतिदिन चबाकर रस अंदर लेने से मंदाग्नि वमन और पेट के कृमियों का अंत होता है ।
एक बार बादशाह अकबर और बीरबल सुबह की सैर करते हुए साथ में टहल रहे थे । रास्ते में एक तुलसी का पौधा देख कर अकबर ने बीरबल से पूछा यह कौन सा पौधा है ? बीरबल ने कहा जहांपनाह यह तुलसी माता हैं । अकबर ने आनन-फानन में उस पौधे को यह कहते हुए उखाड़ कर फेंक दिया कि भला यह तुम्हारी माता कैसे हो सकती है ? आपसी संवाद करते हुए दोनों आगे बढ़ते हैं । आगे एक अन्य पौधा देखकर अकबर बोले बीरबल यह कौन सा पौधा है ? बीरबल ने कहा हुजूर यह हमारे पिताजी खजौड़ा का पौधा है । अकबर ने झूंझलाकर यह पौधा भी उखाड़ा और दोनों हाथों से मसल कर फेंक दिया । थोड़ी ही देर में उनके हाथों में खुजली होने लगी । वह शरीर में जिस भाग को छूते वहीं खुजली होने लगती थी । खुजली से परेशान होकर अकबर ने बीरबल से खुजली का निदान जानना चाहा । तो बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा हुजूर आपने हमारी तुलसी माता का अपमान किया है । इसलिए हमारे पिता नाराज हो गए हैं । अब आपको तुलसी माता की ही शरण में जाना पड़ेगा । अकबर तुलसी के उसी पौधे को लेकर आए और बीरबल ने बताया कि इन के पत्तों का रस खुजली वाले स्थान पर लगाएं और लगाते ही आश्चर्य हुआ कि खुजली बंद हो गई । ऐसी चमत्कारिक औषधीय शक्ति तुलसी में है । आज भी खुजली से परेशान पीड़ित व्यक्ति तुलसी के पत्तों का रस लगाने से ठीक हो जाते हैं । अकबर ने इस घटना के बाद तुलसी को विशिष्ट स्थान दिया ।
वास्तव में पुराणों का यह कथन सत्य है कि जिस घर आंगन में तुलसी का वास होता है, वह घर तीर्थ के समान पवित्र रहता है । वहां पर रोगोत्पादक कीटाणु प्रवेश नहीं करते हैं । तथा वहां रहने वाले बीमारियों से बचे रहते हैं । और इसलिए तुलसी के पूजन का महत्व है । तुलसी के बीज नपुंसकता को रोकते हैं तथा जननेंद्रिय तथा मूत्र संस्थान के विकारों को दूर करते हैं । तुलसी की विशिष्ट गंध के कारण इसके पौधे जहां उगते हैं वहां मच्छर तथा अन्य कीड़े नहीं आते हैं । यहां तक की तुलसी के पौधों से मलेरिया भागने लगता है ।
चरक संहिता में एक उल्लेख है कि तुलसी वन के चारों ओर तीन मील तक वायु पूर्णत: शुद्ध रहती है ।
इनके पत्तों में एक प्रकार का तेल ज्वर के कीटाणुओं को हवा में ही नष्ट कर देता हैं । इस प्रकार तुलसी प्रकृति माता की महान देन है । यदि हम तुलसी के पौधों का बराबर सिंचन देखभाल करते हैं तो तुलसी माता हमारे स्वास्थ्य की रक्षा बराबर करती है इसमें कोई दो राय नहीं है । इसलिए तुलसी के पौधों की हिफाजत करके अपने स्वास्थ्य का सुरक्षा कवच अपनाएं और घर की पवित्रता को बनाए रखें ।