संसार के प्रथम संदेश वाहक थे ‘नारद मुनि’

हिंदू शास्त्रों के अनुसार ब्रह्माजी के मानस पुत्रों में से एक हैं । उन्होंने कठिन तपस्या से ब्रह्मर्षि पद प्राप्त किया था । भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक माने जाते हैं । इन्हें समाचार के देवता के नाम से भी जाना जाता है ।

देवर्षि नारद मुनि का जन्म ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन हुआ था इसलिए इस दिन को नारद जयंती और पत्रकार दिवस के रूप में मनाते हैं । नारायण- नारायण की स्तुति करने वाले नारद मुनि भगवान विष्णु के न केवल परम भक्त माने जाते हैं । बल्कि उन्हें पूरे संसार के पहले संदेशवाहक के रूप में भी पहचाना जाता है । ये देवों और दानवों के परामर्शदाता भी थे ।

देवलोक से भूलोक तक, देवताओं से दानवों तक तीनो लोक में संदेश और गोपनीय संदेश पहुंचाने में महर्षि नारद की भूमिका आज भी प्रासंगिक है । सृष्टि के प्रथम संदेशवाहक, संगीत , कला और साहित्य के ज्ञाता नारद को सभी विधाओं में महारत हासिल थी । ब्रह्मापुत्र नारद ने जनकल्याण को प्राथमिकता दी और लोकहित में समस्त कार्य किए । यही वजह है कि हर वर्ष आज भी नारद मुनि की जयंती को लोग हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा के दिन नारद मुनि का जन्म हुआ था और उनके भक्तों के लिए यह दिन विशेष महत्व रखता है । भले ही नारद जी को देवर्षि कहां गया हो लेकिन उनका कार्य केवल देवताओं तक संदेश पहुंचाना नहीं था । बल्कि दानवों और मनुष्यों के भी संदेशवाहक और मित्र थे । और वे आगामी खतरों को लेकर लोगों को पहले ही सचेत कर दिया करते थे । नारद जी बचपन से ही अत्यंत सुशील थे । वे खेलकूद छोड़कर उन साधुओं के पास ही बैठे रहते थे और उनकी छोटी से छोटी सेवा भी बड़े मन से किया करते थे । संत सभा में जब भागवत कथा होती थी तो वे तन्मय होकर सुना करते थे । संत लोग उन्हें अपना बचा हुआ भोजन खाने के लिए दे दिया करते थे । हिंदू शास्त्रों के अनुसार नारद जी ब्रह्मा जी के मानस पुत्रों में से एक माने जाते हैं । वे प्रत्येक युग में भगवान की भक्ति और उनकी महिमा का विस्तार करते हुए लोक कल्याण के लिए हमेशा सर्वत्र विचरण किया करते थे । इनकी वीणा भागवत जप महती के नाम से प्रसिद्ध है । उससे नारायण नारायण की ध्वनि निकलती रहती है । पौराणिक कथाओं के अनुसार देवर्षि नारद ,व्यास , बाल्मीकि और महाज्ञानी सुकदेव आदि के गुरू हैं । श्रीमद् भागवत जो भक्ति , ज्ञान और वैराग्य का परम उपदेशक ग्रंथ है और रामायण देवर्षि नारद की प्रेरणा से ही हमें प्राप्त हो सके हैं ।

एक बार नारद पृथ्वी का भ्रमण कर रहे थे । तब उन्हें उनके एक खास भक्त जो नगर का सेठ था, ने याद किया । अच्छी सत्कार के बाद सेठ ने नारद जी से प्रार्थना किया कि आप ऐसा कोई आशीर्वाद दें कि कम से कम एक बच्चा हो जाए। नारद ने कहा कि तुम लोग चिंता न करो , मैं अभी नारायण से मिलने जा रहा हूं । उन तक तुम्हारी प्रार्थना पहुंचा दूंगा और वह अवश्य कुछ करेंगे । नारद विष्णु धाम , विष्णु से मिलने गए और सेठ की व्यथा बताई । भगवान बोले कि उसके भाग्य में संतान सुख नहीं है । इसलिए कुछ नहीं हो सकता है । उसके कुछ समय बाद नारद ने एक दीये में तेल ऊपर तक भरा और अपनी हथेली पर सजाया और पूरे विश्व की यात्रा की । अपनी निर्विघ्न यात्रा का समापन उन्होंने विष्णु धाम आकर ही संपन्न किया । इस पूरी प्रक्रिया में नारद को बड़ा घमंड हो गया , कि उनसे ज्यादा ध्यानी और विष्णु भक्त कोई और नहीं है । अपनी इसी घमंड में नारद पुन: पृथ्वी लोक पर आए और उसी सेठ के घर पहुंचे । इस दौरान सेठ के घर में छोटे-छोटे चार बच्चे घूम रहे थे । नारद ने जानना चाहा कि यह संतान किसकी है । तो सेठ बोले आप की है । नारद इस बात से खुश नहीं थे । उन्होंने कहा क्या बात है साफ-साफ बताओ । सेठ बोला कि एक साधु एक दिन घर के सामने से गुजर रहा था और बोल रहा था कि एक रोटी दो तो एक बेटा और चार रोटी दो तो चार बेटा । मैंने उन्हें चार रोटी खिलाई कुछ समय बाद मेरे चार पुत्र हुए । नारद जी आग बबूला हो गए और विष्णु की खबर लेने के लिए विष्णु धाम पहुंच गए । नारद को देखते ही भगवान अत्यधिक पीड़ा से कराह रहे थे । उन्होंने नारद को बोला कि मेरे पेट में भयंकर रोग हो गया है और मुझे जो व्यक्ति अपने हृदय से लहू निकाल कर देगा उसी से मुझे आराम होगा । नारद उल्टे पांव लौट आए और पूरी दुनिया से विष्णु की व्यथा सुनाई पर कोई भी आदमी तैयार नहीं हुआ । जब नारद ने यही बात एक साधु को सुनाई तो वह बहुत खुश हुआ उसने छुरा निकाला और एकदम अपने सीने में भौंकने लगा । और बोला मेरे प्रभु की पीड़ा यदि मेरे लहू से ठीक हो जाती है तो मैं अभी तुम्हें दिल निकाल कर देता हूं । जैसे ही साधु ने दिल निकालने के लिए चाकू अपने सीने में घोपना चाहा तभी विष्णु वहां प्रकट हुए और बोले जो व्यक्ति मेरे लिए अपनी जान दे सकता है । वह किसी व्यक्ति को चार पुत्र भी दे सकता है । साथ ही उन्होंने नारद से यह भी कहा कि तुम तो सर्वगुण संपन्न हो । तुम चाहते तो उस सेठ को भी पुत्र दे सकते थे । नारद को अपने घमंड पर बहुत पश्चाताप हुआ ।

सृष्टि के प्रथम संदेशवाहक संगीत , कला और साहित्य के ज्ञाता नारद को सभी विद्याओं में महारत हासिल थी । ब्रह्मापुत्र महर्षि नारद ने सदा ही जनकल्याण को प्राथमिकता दी और लोकहित में समस्त कार्य किए । नारद जयंती पर किया गया विशेष पूजन नारद मुनि के समान ज्ञान प्राप्ति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है । पौराणिक कथाओं के मुताबिक नारद जयंती के दिन नारद मुनि का विशेष पूजन सभी के लिए लाभप्रद माना जाता है ।

विश्व ब्राम्हण संगठन के प्रदेश अध्यक्ष डॉ बी के शर्मा बताते हैं कि नारद मुनि, देव लोक और भूलोक के बीच संदेशवाहक का कार्य करते थे । वर्तमान में संवाददाता के रूप में नारद मुनि की भूमिका निभाई जा रही है । आज नारद को सृष्टि का सर्वश्रेष्ठ ‘लोक संचारक’ या ‘पत्रकार’, कहा जाए तो कुछ भी अतिशयोक्ति नहीं होगी । महर्षि नारद मुनि का संवाद हमेशा लोकहित में रहता था । नारद को देवर्षि की संज्ञा दी गई है लेकिन उनका कार्य देवताओं तक ही सीमित नहीं था । वह दानव और मनुष्यों के भी मित्र बनकर उनका मार्गदर्शन करते थे ।

पंडित महेश चंद्र वशिष्ठ बताते हैं कि आमतौर पर भगवान के नाम पर लोग अपने बच्चे का नाम रखते हैं । लेकिन कोई भी माता-पिता अपने बच्चे का नाम नारद नहीं रखना चाहता है । नारद का अर्थ है कभी न स्थिर रहने वाला और इधर से उधर भटकने वाला । कुछ मूढ़ लोगों ने नारद को कलह प्रिय के रूप में भी प्रस्तुत किया है इसी के कारण लोग अपने बच्चे का नाम नारद नहीं रखना चाहते हैं यानी नारद नाम पसंद नहीं है । लेकिन यह सच है कि नारद जब भी कलह कराने की भूमिका में रहे हैं तब भी उनका उद्देश्य लोक मंगलकारी ही रहा था ।

पंडित शिवकुमार शर्मा बताते हैं कि संगीत ,कला और लेखन से जुड़े लोगों के लिए नारद जयन्ती का दिन खास है । नारद मुनि विद्या के ज्ञाता थे , लेकिन कई बार उनका स्वभाव कुटिल हो जाता था और वह अपनी जुबान से कलह करवाते थे । लेकिन उनके हाथों की वीणा सदैव मधुर संगीत उत्पन्न करती थी ।

कलम , वाद्य यंत्र का नारद जयन्ती के दिन अवश्य पूजन करना चाहिए ।

Rajendra Yadav

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