दूग्धेश्वर नाथ शिव मंदिर

प्रिय पाठकों , आज मैं आप लोगों को पूर्वांचल के एक अति प्राचीन एवं चमत्कारी शिव मंदिर की कहानी प्रस्तुत करने जा रहा हूं , जिसको पाताल लोक का शिवलिंग कहते हैं । बताया गया है कि इस शिव मंदिर में स्थित शिव लिंग की लंबाई पाताल लोक तक है । इस मंदिर का नाम दूग्धेश्वर नाथ शिव मंदिर है । इसे नाथ बाबा के नाम से भी जाना जाता है ।

यह शिव मंदिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद के जिला मुख्यालय से करीब 22 किलोमीटर पश्चिम दिशा में रुद्रपुर तहसील के उत्तर – पूर्व में स्थित है । मंदिर के पुजारी प्रदीप पांडे बताते हैं यह महादेव मंदिर काशी के क्षेत्र में आता है । शिव पुराण में इसका वर्णन है । मंदिर के महंत रमाशंकर भारती बताते हैं कि पुरातन काल में रुद्रपुर में घर – घर में भगवान शिव की पूजा एवं आराधना होती थी , इसलिए रुद्रपुर को दूसरी काशी (छोटीकाशी) भी कहते हैं स्कंद पुराण में इस मंदिर का वर्णन है । इस शिवलिंग को 12 ज्योतिर्लिंगों के समान महत्वपूर्ण बताया गया है ।

इस नाथ बाबा शिवलिंग का दर्शन करने के लिए प्रसिद्ध चीनी यात्री ह्वेनसांग ने भी भारत दौरे पर आने के दौरान , रुद्रपुर में आकर दर्शन किये थे । दूग्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर की विशालता और धार्मिक महत्व को देखते हुए ह्वेनसांग ने अपने चीनी भाषा में मंदिर के परिसर में ही एक दीवार पर कुछ टिप्पणी किया था । चीनी भाषा का वह लेख आज भी दीवाल पर मौजूद है ।

त्र्यंबकेश्वर भगवान के बाद रुद्रपुर में स्थित बाबा दूग्धेश्वर नाथ का लिंग धरातल से करीब 15 फीट अंदर है । इस मंदिर में प्रयोग की गई ईंटें बौद्ध काल के बताए गए हैं । महाकालेश्वर ( उज्जैन ) की भाँति इसे पौराणिक महत्ता प्रदान की गई है । यह उनका उप लिंग है । विश्व विख्यात रुद्रपुर के इस शिवलिंग के आधार का पता लगाना एक अनबूझ पहेली है । शिवलिंग का आधार कहां है , इसका पता आज तक नहीं चल पाया है । देशभर में वैसे तो कई चमत्कारी शिव मंदिर हैं । जिनका अपना अलग-अलग पुरातात्विक एवं पौराणिक महत्त्व है । हिंदू धर्म के पुराणों में 12 ज्योतिर्लिंगों के अलावा भी अनेक शिव मंदिर देखने को मिलते हैं , जिनकी कथायें एवं महत्व ग्रंथों में मिलता है । ऐसा ही एक अद्भुत शिव मंदिर देवरिया जिले के रुद्रपुर शहर में स्थित है ।

इस दूग्धेश्वर नाथ महादेव मंदिर के विषय में कहा जाता है कि कई सौ साल पहले मंदिर का यह स्थान घने जंगलों से ढका – भरा था । यहां पर कुछ चरवाहे अपने – अपने गायों और भैंसों को चराने के लिए आते रहते थे । घास चरते – चरते एक गाय जंगलों की एक टीला के पास खड़ी हो जाती थी और उसके थन ( स्तन ) से स्वयं दूध की धारा गिरने लगती थी । इस बात की चर्चा चरवाहे गांव में करने लगे । धीरे – धीरे यह बात फैल कर उस समय के रुद्रपुर के राजा हरी सिंह के कानों तक पहुंच गई । तब राजा हरि सिंह ने इस गाय का दूध स्वयं टीला के पास गिरने वाली बात काशी के पंडितों से बताई और उस स्थान की खुदाई कराने लगे , जहां पर गाय के दूध की धारा गिरती थी । खुदाई करते समय एक शिवलिंग दिखाई दिया । अब राजा हरि सिंह ने सोचा कि इस शिवलिंग को खुदवा कर , जंगलों से निकालकर अपने महल के आस-पास अच्छा सा मंदिर बना कर उसमें इस शिवलिंग को स्थापित करवा दूंगा । यह विचार अपने मन में करके राजा ने मजदूरों से शिवलिंग को खुदवा कर निकालने का प्रयास करने लगे । जैसे-जैसे शिवलिंग को निकालने का प्रयास किया गया , वैसे – वैसे शिवलिंग अंदर की ओर धँसता चला गया । कई दिनों तक यह कार्यक्रम चला , शिवलिंग तो नहीं मिला निकला परंतु वहां एक कुआं जरूर बन गया । बाद में राजा को भगवान शिव ने स्वप्न में आदेश दिया कि “मंदिर उसी स्थान पर बनवाओ, जहां पर शिवलिंग है । “ निराश होकर रुद्रपुर नरेश हरीसिंह ने बड़ी धूमधाम से उस शिवलिंग वाले स्थान पर एक भव्य मंदिर बनवा कर , 11 वीं सदी में काशी के पंडितों को बुलाकर मंदिर की स्थापना करवाये । रुद्रपुर नरेश राजा हरीसिंह जब तक जीवित थे , भगवान दूग्धेश्वर नाथ की पूजा – अर्चना करते रहे और श्रावण के महीना में मेला का आयोजन करवाने लगे । यही परंपरा आज भी कायम है ।

अंक ज्योतिषाचार्य एवं मंदिर के संबंध में अच्छी जानकारी रखने वाले मणिचंद्र पांडेय बताते हैं की 11 वीं सदी में इस मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण कराने वाले रुद्रपुर के राजा हरी सिंह का साम्राज्य 87 कोस में फैला हुआ था । पांडेय के अनुसार यह मंदिर ईसा पूर्व के समय से ही यहां है । पुरातत्व विभाग के पटना कार्यालय में भी ” नाथ बाबा ” के नाम से इस मंदिर के संबंध में उल्लेख मिलता है । 11 वीं सदी में अष्टकोण में बना हुआ यह प्रसिद्ध एवं अद्भुत शिव मंदिर अपनी अनूठी विशेषता के कारण पूरी दुनिया में जाना जाता है । यह शिवलिंग स्वयं धरती से प्रकट हुआ है , इसे मनुष्य द्वारा नहीं बनाया गया है । इस “स्वयं- शिवलिंगी ” शिवलिंग का दर्शन करने मात्र से ही श्रद्धालु की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं । श्रद्धालुओं की शिवलिंग स्पर्श करने के लिए 14 सीढियां नीचे उतरना पड़ता है । यह शिवलिंग हमेशा भक्तों के दूध और जल के चढ़ावे से डूबा रहता है ।

मंदिर के पश्चिम में एक विशाल तालाब है , जो आज भी कमल के फूलों से भरा रहता है । इस शिव मंदिर को “नाथ बाबा “ के नाम से भी जाना जाता हैअष्टकोण में बने बाबा दूधेश्वर नाथ का भव्य और विशाल शिव मंदिर में वैसे तो वर्ष भर श्रद्धालुओं एवं भक्तों का आने – जाने का तांता लगा रहता है , लेकिन श्रावण महिना और महाशिवरात्रि के दिन भारी भीड़ होती है । सावन महीने में श्रद्धालु सरयू नदी से कांंवड़ में जल भरकर , इस शिव मंदिर में शिवलिंग के ऊपर चढ़ाने आते हैं ।

यह पुरानी परंपरा आज भी चली आ रही है । इस समय पूरा मंदिर परिसर हर-हर महादेव , ऊँ नमः शिवाय और बाबा भोलेनाथ की जयकारों से गुंजायमान होता रहता है। राजा हरीसिंह द्वारा बनाया हुआ मंदिर आज भी श्रद्धा एवं शिव भक्ति का प्रतीक है । इस नाथ बाबा मंदिर को पर्यटक स्थल घोषित किया जा चुका है , किंतु सुविधाओं की कमी है और श्रद्धालुओं के लिए विश्राम स्थल एवं जलपान गृह की कमी है । इस दूग्धेश्वर नाथ शिव मंदिर की महिमा अपरंपार है।

Rajendra Yadav

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